बहुत कठिन है डगर पनघट की

www.hamarivani.com शुरू हो गई है चुनाव चहल पहल। अमेठी में आप के नेता और कवि कुमार विश्वास को वहां की जनता सिखा रही है राजनीति की एबीसीडी। यहां कुमार विश्वास की कविता खुद उन्हीं पर फिट बैठ रही है। कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है। विश्वास जी टीवी पर बोलना, मंचों पर वाहवाही बटोरना और गांव की गलियों में लोगों से मुद्दे की बात करना बहुत कठिन है। इधर मुंबई में एनसीपी वालों आप कार्यालय पर बवाल काट दिया।
दिल्ली में जो किया है आप की सरकार ने वह भी पीछा छोड़ने वाला नहीं है। कोई बिजली का बिल लिए घूम रहा है तो किसी को पानी माफिया फिर सताने लगे हैं। हर कदम पर मुसीबत हैं।
अब तो आप भी मान ही गए होगे कि बहुत कठिन है डगर पनघट की।

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

लोकतंत्र का दुर्भाग्य

तेलंगाना मुद्दे पर लोकसभा में हुई बहस को देखने सुनने का जनता को पूरा अधिकार था। ये भारतीय लोकतंत्र का दुर्भाग्य है कि जिस उद्देश्य से लोकसभा का चैनल शुरू किया गया था, उसका एक अहम दिन भारतीय जनता ने गंवा दिया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि चैनल पर लोकसभा की कार्यवाही के प्रसारण को जानबूझकर बंद किया गया होगा। हालांकि सरकार ने स्पष्टीकरण दिया है कि तकनीकी कारणों से ऐसा हुआ है। मान लीजिए कि यह सहमति बन गई थी कि इस प्रसारण से आंध्र प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति खराब होती तो फिर इसके लिए स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं थी। हालांकि आंध्र में आप जो देख रहे हैं, उससे खराब स्थिति और क्या हो सकती थी। राज्य के मुख्यमंत्री इस्तीफा दे चुके हैं और एक बड़े इलाके में विरोध और बंद हो रहे हैं। इससे एक और बात साबित होती है कि अभी देश के व्यवस्थापकों में लोकतंत्र की पारदर्शिता की समझ बहुत पिछड़े स्तर की है। वो समझदार नहीं हैं। मुझे नहीं लगता कि प्रमुख विपक्षी दल भाजपा इस मामले से अनभिज्ञ होगी। भाजपा से तो बहुत अच्छे तरीके से बात की गई होगी। इससे पहले भी संसद में अहम मसलों पर यूपीए का भाजपा के साथ सहयोग रहा है। तेलंगाना के मुद्दे पर भी भाजपा को विश्वास में लिया गया था, भले ही पार्टी राजनीतिक कारणों से कुछ भी कहे। तेलंगाना का मुद्दा राजनीतिक कारणों से ही लटका हुआ है अन्यथा इसे तो 1956 में ही बन जाना चाहिए था।
 बीबीसी में प्रमोद जोशी

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