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बहुत पहले की बात है जब गुरु को भगवान से उंचा स्थान प्राप्त था और चिकित्सकों को धरती के भगवान का स्थान दिया जाता था। आज स्थिति अलग हो गई है। गुरु की गरिमा इतनी गिरी है कि कोई सम्मान पाने के लिए इस ओर नहीं जाना चाहता सिर्फ ऊंची तनख्वाह ही लोगों को शिक्षण की ओर ले जाती है। ये व्यवसायी करण की देन है और इसी व्यवसायीकरण के कारण ही धरती के भगवान यानी कि डाक्टर भी हैवानियत की ओर बढ़ रहे हैं। जो हालात हैं उसके मद्देनजर हैवानियत कोई अनुतित शब्द नहीं है। हां यहां पर हम यह जरूर कहेंगे कि सभी ऐसे नहीं हैं। 60 फीसदी इंसान ही हैं और दस फीसदी अभी भी भगवान की तरह काम करते हैं। लेकिन 30 प्रतिशत डाक्टर और जो अभी पूरे डाक्टर नहीं बने हैं मेरा मतलब मेडिकल कालेजों में अपनी पढ़ाई कर रहे मेडिकल छात्रों और जूनियर डाक्टरों से है उनमें जो नई फौज आ रही है वो साठ फीसदी हैवानियत वाले कारनामे दिखा रहे हैं। हम सिर्फ यूपी की बात कर रहे हैं। यहां मेडिकल कालेज में आज डाक्टर बन रहे छात्रों की मानो मानवीय संवेदनाएं मर गई हैं या वे उन्हें सर उठाने नहीं दे रहे।
सबसे पहले गोरखपुर मेडिकल कालेज का एक वाकया। गोरखपुर में पत्रकारों से किसी मामले को लेकर विवाद हुआ। विवाद बढ़ा तो जूनियर डाक्टर और मेडिकल छात्रों ने मिलकर पत्रकारों और किसी मरीज के तीमारदारों को जमकर धुना। दोनों ओर से एफआईआर हुई। धरना प्रदर्शन और हड़ातल की लंबी लड़ाई चली। जिसके पास पैसा था वह तो प्राइवेट सेक्टर में चला गया। मारे गए गरीब जिन्हें मेडिकल कालेज में इलाज नहीं मिला।
वहीं का एक और मामला बिजली विभाग ने बिल न जमा होने पर मेडिकल छात्रों के एक हास्टल की बिजली काट दी। गुस्साए छात्रों ने पहले कालेज और फिर हास्पिटल की बिजली काट दी और मरीजों को बाहर कर दिया। जिसने विरोध किया उसकी पिटाई।
मेरठ मेडिकल कालेज में पिछले महीने एक मरीज के तीमारदारों से शुरू हुए विवाद के बाद जूनियर डाक्टरों ने कवरेज कर रहे पत्रकारों और पुलिसकर्मियों को धुन दिया। कई दिन हड़ताल की तमाम मरीजों के परिजन जो आए थे किसी और का इलाज कराने पिटकर खुद दूसरे अस्पताल में भर्ती हो गए।
अब कानपुर का मामला। कहीं किसी एक व्यक्ति या समूह ने गलती की। भुगत रहा है पूरा प्रदेश। मंगलवार तक हड़ताल के कारण प्रदेश में मरने वालों की संख्या 14 पार कर गई थी।
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ठीक है लाखों रुपये देकर जो डाक्टर बना है वो फ्री में सेवा नहीं कर सकता मगर डाक्टरों को पैसे कमाने के लिए पात्र तो तलाशने ही होंगे। लोग हाइपर हो रहे हैं तो जाहिर हैं डाक्टर भी होंगे। डाक्टरों का कहना है सपा नेता के लोगों ने मारा। उनकी लड़ाई ठीक होती अगर वो सिस्टम से होती। उनकी हड़ताल भी ठीक है अगर वे उसमें अपने मानवीय पक्ष को शामिल करते।
समाज डाक्टरों के बारे में सोचे इससे पहले उन्हें खुद सोचना चाहिए कि अगर उन्हें सिर्फ एक थप्पड़ या एक डंडा लगने से प्रदेश भर की व्यवस्था भंग कर दे रहे हैं तो उसे क्या करना चाहिए जो अपने मां, बाप या भाई बहनों को अपनी आंखों के सामने इलाज न मिल पाने के कारण मरते हुए देखने को विवश हो रहा है।
अब तक पुलिस आतंकवादी बनाती रही है मगर यही हाल रहा तो आने वाले वक्त में डाक्टरों के कारण भी लोग आतंकवादी बनेंगे।